Kavita Jha

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सतरंगी जीवन #कहानीकार प्रतियोगिता लेखनी कहानी -16-Aug-2023

भाग -4
दो घंटे पूजा के साथ बैठने के बाद राधिकाजी को लगा शांति तो मुझे इग्नोर कर रही है। नहाने के लिए जो गई तो ऐसी गायब हुई कि ये उसका घर ही नहीं हो।

"अच्छा पूजा अब चलती हूँ, शाम होने को है। शांति बहना का नहाना  पूजा अब तक हुआ नहीं। चल कोई नहीं भेंट तो हो ही गई है। अजय को फोन करके बुला लेती हूँ।"

" थोड़ी देर बैठिए काकी माँ, माँ की पूजा होने ही वाली होगी। मैं चाय बनाकर लाती हूँ।"

राधिका अपना मोबाइल बैग से निकाल अजय से बात कर रही है.." ठीक है.. मैं आ रही हूँ, वैसे भी तूँ यहाँ आकर क्या करेगा ।सभी घूमने गए हैं और तेरी काकी जी तो ... चल रहने दें ।मैं आ रही हूँ।"

"काकी माँ, चाय बन गई है.. पी कर  ही जाईए।"
"रहने दे बहु, बिल्कुल मन नहीं कर रहा।"

" ठीक है मैं आपको चौराहे तक छोड़ आती हूँ, जहाँ आपकी गाड़ी खड़ी है।इसी बहाने आपकी नई गाड़ी भी देख लूंगी। वैसे इस गली में तो सभी गाड़ियां लाते हैं पता नहीं अजय भईया क्यों नहीं लाए।"

"वो बोल रहा था गाड़ी गली में मोड़ने से स्क्रैच पड़ने का खतरा है। "
वैसे राधिका मन ही मन खुश हो रही थी कि चलो शांति ने नहीं देखी उसकी नई गाड़ी तो कम से कम उसकी बहु पूजा तो देखेगी.. फिर जब अपनी सास को गाड़ी के बारे में बताएगी तो वो जलभुन जाएगी।

पूजा राधिका के साथ चल रही थी तो राधिका ने पूछा," सुना है तेरे भतीजे की शादी हो गई, वो तो मेरी छोटी पोती की उम्र का ही होगा.. वही 22-23 साल का.. "
" हाँ काकी माँ , पिछले साल ही हुई है उसकी शादी। "
" अच्छा ही किया तेरे भाई ने ,चल अब तेरी मम्मी का हाथ बंटाने वाली आ गई। तेरे पापा और भाभी के जाने के बाद वह बिल्कुल अकेली पड़ गई थी।"
", हाँ काकी माँ"

पूजा को लग रहा था राधिका कुछ ऐसा ना पूछ ले जो बताना उसके लिए मुश्किल हो जाए।
बातों का रुख मोड़ते हुए पूजा बोली," काकी मां काका जी की तबियत अब कैसी है? ये बता रहे थे उन्हें पैरालिसिस का अटैक आया था। "

" हाँ डॉक्टर को दिखाया था, हल्का लकवा जैसा ही बता रहे हैं। बस जब देखो अपनी बागवानी में लगे रहते हैं। घर की सब्जी फल राशन सब की चिंता उन्हें ही है। तो हाथ पैर तो टेढ़ा होगा ही ना।अब बता बहु क्या हम लोगों की उम्र है यह सब काम करने की। एक तेरी सासूमाँ है और एक तेरे काका जी... जब देखो काम करते रहते हैं। "

" शरीर और दिमाग काम करता रहे तो अच्छा ही है ना काकी माँ।"

" पर किसी भी चीज से ज्यादा काम लोगे तो वो काम करना बंद भी कर ही देती है।यही हाल हुआ है तेरे काका जी के साथ। अभी अपने  हाथ से खाना भी तो नहीं खा पाते। वो तो निशा बहु बहुत ध्यान रखती है।वही उनको खाना खिलाती है और डॉक्टर ने जैसा बताया है समय पर दवाई मालिस एक्सरसाइज करवाती है।"

गली के चौराहे पर एक नई चमकती नीले रंग की कार से लगातार हॉर्न  बज रहा है।
तेज तेज कदम बढ़ाते हुए एक हाथ से अपनी साड़ी को समेटे जिससे गली की धूल मिट्टी उनकी साड़ी के चमकते बॉर्डर पर ना आकर डेरा बना ले। राधिका गाड़ी तक पहुंची और आगे सीसे से अजय को देखा तो उसने हॉर्न बजाना बंद किया और गाड़ी से निकल बाहर आया।
गाड़ी का दरवाजा अजय ने खोला, और राधिका बैठने को हुई तो पूजा ने उनके पैर छुए।
" नमस्ते भईया, भाभी और बच्चे कैसे हैं।"
" सब ठीक हैं। आना कभी तुम लोग भी हमारे घर। अच्छा अभी बहुत देर हो गई है पापा के डॉक्टर आने वाले होंगे।"

राधिका के जाने के बाद घर लौटते वक्त पूजा हैरान थी, कैसे कैसे लोग हैं इस दुनिया में। जिसका पति लकवा से ग्रसित हो उसकी पत्नी इस तरह अपने पति के प्रति बेपरवाह हो। इनको देखकर कोई कह सकता है कि इनके पति के बिमार होने से इन्हें कोई दुख है। ये तो अपने साज संवार और घूमने फिरने में ही मस्त हैं।
***
दिल्ली के एक फ्लैट नुमा घर के एक अंधेरे कमरे में अपने बिस्तर पर बैठी कल्याणी जिनकी दोनों आँखों की रोशनी चली गई है , शरीर बिमारियों से जकड़ा हुआ है। सुगर और बीपी कभी भी अपना रौद्र रूप दिखा आतंकित कर देता है पर उनके आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को कभी कोई समस्या डिगा नहीं पाई।पति की मौत के कुछ ही समय बाद और इकलौते बेटे की पत्नी के देहान्त के बाद अपने तीन पोते पोतियों की परवरिश उन्हीं के कांधे पर आ गई।
बेटा अपने बिजनेस के लिए अक्सर शहर से बाहर ही रहता है। उनकी बड़ी बेटी का घर भी पास में ही है , बेटी चाहती है कि मां मेरे साथ रहे पर यह तो कल्याणी जी के आत्मसम्मान पर ठेस पहुंचाने वाली ही बात है।कुछ भी हो जाए बेटी के घर रहना सही नहीं है ,बेटा जैसे ही जहाँ भी रखेगा वहीं हर हाल में उसी के साथ रहूंगी।
उनकी पोती और छोटा पोता उन्हीं के साथ या वो उनके साथ रहती हैं कहना कठिन है क्योंकि जब इंसान के शरीर के कुछ अंग  ही उसका साथ छोड़ दे और वो दूसरों पर निर्भर हो जाए तो आत्मनिर्भर बने रहना कठिन है।

यह वही कल्याणी जी है आज मैली फटी पुरानी सफेद साड़ी पहनी अपने अतीत में खोईं है जो सबके लिए एक मिसाल हुआ करती थीं। माथे पर शिल्पा बिंदी, लाल मेहरून साड़ी सलीके से पहने। लंबा कद, काले लंबे बाल।

सबकी मदद करना, सबके दुख तकलीफ़ में काम आना ये उनकी पहचान थी जिसके खातिर कई बार उनके पति रमलेश जी उनसे नाराज़ हो जाते, क्यों इतनी भाग दौड़ करती है 'नी',  कोई काम नहीं आएगा तेरे।ये दुनिया मतलबी है अभी जिनके लिए तू खाना पानी त्याग उनकी मदद करती है तेरी ज़रूरत में कोई साथ नहीं देने वाला।

वो मुस्कुराकर कहती,"आप हैं ना बस , हमेशा मेरा साथ देंगे ना। ये गली की औरतें कितनी उम्मीद लगाकर आतीं है मेरे पास, कैसे उन्हें मना कर दूं मत आया करो मेरे पास।"
रमलेश जी अपनी 'नी' यानी कल्याणी जी को बाहों में समेटते हुए कहते"मेरे लिए भी तो समय निकाल लिया कर नी, छुट्टी वाले दिन भी जब तूं मेरे पास नहीं बैठती और गली मौहल्ले की औरतों के साथ बैठी रहती है तो मेरा मन घर में बिल्कुल नहीं लगता। पूरे हफ्ते छुट्टी का इंतजार रहता है जिससे मैं तेरे साथ समय बिता सकूं और वो दिन भी तूं दूसरों को दे देती है।"

"अच्छा जी अब मना कर लूंगी,कहो तो गेट पर बोर्ड टांग देती हूं... रविवार और छुट्टी वाले दिन कोई हमारे घर ना आए।" कहती हुई कल्याणी रमलेश जी के आगोश में समा जाती है।

पीठ के पीछे रखे तकिए को गोदी में समेट बुदबुदाती हैं…. अब कोई नहीं आता, मेरे पास... आप क्यों छोड़कर चले गए मुझे अकेला...
कल्याणी के जीवन की कहानी जानने के लिए जुड़े रहिए इस 'सतरंगी जीवन .. जीवन की ढलती सांझ या नई सुबह' से..
***
कविता झा'काव्य 'अविका''
( कहानी से जुड़े रहने के लिए हार्दिक आभार)

# लेखनी

#कहानीकार प्रतियोगिता 


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1 Comments

Babita patel

03-Sep-2023 09:44 AM

Amazing

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